तेहरान (IQNA): यह बातचीत मौलाना हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिजवीऔर मौलाना मुहम्मद बाकिर रज़ा सईदी के बीच हुई और इसमें दोनों ने भारत में कुरान के महत्व और कुरान को हिफ़्ज़ करने पर और इस संबंध में नए सुझावों पर विचार किया है। आशा है कि यह चर्चा आपके और पूरे देश के लोगों के लिए उपयोगी होगी।
हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिजवी
नसीराबाद अकबरपुर जिला अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश
इस संबंध में, मैं सबसे पहले अपनी मां का उल्लेख करूंगा, उन्होंने मुझे कुरान पढ़ने के लिए मेरी हिम्मत बढ़ाई। उसके बाद मुझे हौसला देने वाले दूसरे शख्स उस्ताद करीमी हैं जो कारगिल के रहने वाले हैं। उन्होंने कई वर्षों तक मुंबई के मदरसे में मेरा और अन्य छात्रों की हिम्मत आफजाई की और हौसला दिया और उन्होंने हमें कुरान और अन्य चीजों को पढ़ने में तजवीद का ख्याल रखने के बारे में बताया। फिर हमें कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुंबई में निमंत्रण मिलने लगे और इस तरह कुरान के प्रति हमारा लगाव बढ़ता गया और इसमें हमारी रुचि बढ़ती चली गई।
फिर हम ईरान आ गए और यहाँ हमने कुरान को हिफ़्ज़ करना शुरू कर दिया और अल्हम्दुलिल्लाह हमें कुरान को हिफ़्ज़ करने के आधार पर जामिया अल-मुस्तफा में भर्ती कराया गया।
मुझे लगभग दो साल लग गए। और मैंने जामियत अल-मुस्तफा में प्रवेश करने से पहले 25 पारे याद किए। लेकिन मुझे नहीं पता था कि जमीयत अल-मुस्तफा SA में कुरान हिफ्ज़ करने के आधार पर प्रवेश मिलता है। जब मेरे 25 पारे पूरे हो गए तो मेरे उस्ताद ने मुझे प्रवेश परीक्षा देने के लिए कहा। और मुझे दाखिला मिल गया और मैंने जामिया अल-मुस्तफा में दाखिले के बाद बचे हुए पांच पारों को पूरा किया।
कुरान मजीद हर मैदान में इंसान की मदद करता है उसका पुश्त पनाह बनता है सबसे बड़ी बात यह है कि उन लोगों का मुंहतोड़ जवाब है जो यह कहते हैं कि शीयों में हाफिज ए कुरान नहीं होते हैं
दूसरी जगह जहां कुरान काम आता है वह उस वक्त है जब हम अपने मुसलमान भाई से इल्मी गुफ्तगू करते हैं और ज्ञान की बहस चलती है तो कोई भी कुरान की आयत का इनकार नहीं कर सकता और कुरान की दलील कोई भी रद्द नहीं कर सकता है। तो दूसरे मजहब से बातचीत करने में दलील के तौर पर कुरान का हिफ्ज करना मदद देता है। उसके बाद जब आप तकरीर करते हैं मजलिस पढ़ते हैं तो सुनने वाले यह देखते हैं कि तकरीर करने वाला मजलिस पढ़ने वाला कुरान से कितना फायदा उठा रहा है और उससे कितना इस्तिफादा कर रहा है। इस तरह अपनी मजलिस में जितना भी ज्यादा कुरान से इस्तफादा होगा पब्लिक में उतनी ज्यादा मकबूलयत मिलेगी। फिर अगर आप सफर में है घर से दूर हैं और पढ़ने लिखने वाली चीजों से दूर हैं और आपको कोई नोट लिखना है तो बड़ी आसानी से अपने कुरान के हिफ्ज़ पर ऐतबार करते हुए आप अपना नोट्स बना सकते हैं अपनी बातें लिख सकते हैं जो कुरान से ली गई हों। कोई अगर कुरान की आयत कहकर कुछ पढ़ रहा है आप अगर हाफिज ए कुरान हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि वह आयत सही पढ़ रहा है या पब्लिक को बेवकूफ बना रहा है। कुरान मजीद को हिफ़्ज़ करने के दुनियावी फायदे भी बेशुमार हैं और मानवी और रूहानी फायदे भी बेशुमार हैं।
कई लोग हैं। एक बनारस से हैं हसन रजा भाई, वह शायर भी हैं उन्होंने बाकायदा हमारे साथ कुरान को हिफ़्ज़ किया था और मुज्तबा रिजवी साहब हैं जिनको ईरान की नेशनलटी भी मिली हुई है और वह मेरे उस्ताद हैं। इसके अलावा फैजुल हसन साहब हैं वह भी कुरान के हाफिज है और दिलावर साहब हैं जिन्होंने हिंदुस्तान में दारुल कुरान भी खोल रखा है। यह सब मुकम्मल कुरान के हाफ़िज़ हैं जिनको हम बहुत करीब से जानते हैं।
लखनऊ में अल-हिरा नाम का बाकायदा शीओं का एक मदरसा है जो कुरान को हिफ़्ज़ कराता है अभी यहां क़ुम मुकद्दसा में नए तुल्लाब आए हैं जो हाफिज ए कुरान हैं उनकी तादाद अच्छी खासी है और मैं बहुत ज्यादा करीब से उनको नहीं जानता हूं। इसके अलावा हिंदुस्तान के अंदर अच्छी खासी तादाद है जो कुरान के हिफ्ज करने के लिए तालीम हासिल कर रहे हैं। किसी ने 10 कर लिए हैं किसी ने 15 मुकम्मल कर लिए हैं किसी ने 20 पूरे कर लिए हैं और किसी ने 25 खत्म कर लिए तो अगर हिंदुस्तान के शीअओं में कुरान के हाफिजों की तादाद देखी जाए तो कम से कम 1000 से ज्यादा की तादाद होगी
1000 से ज्यादा हमारे शीऔं के अंदर कुरान के हाफिज मौजूद है।
जी अल्लाह का शुक्र है। मुझे यहां पर एक बात और याद आई। शुरू में आप ने सवाल किया था कि कुरान का हिफ्ज करना कहां-कहां काम आता है तो यह मुझे याद आया कि जब मैंने हिफ्ज़ करना शुरू किया था। यहां पर मैं यह भी बता दूं कि मैंने उस्मान ताहा के रस्मुल खत वाले कुरान से हिफ्ज़ किया और मैं दूसरों को भी यह मशवरा देता हूं कि वह उस्मान ताहा वाले कुरान से ही हिफ्ज़ करें उस्मान ताहा वाले कुरान में यह आसानी है कि बार-बार वरक़ पलट कर नहीं देखना पड़ता क्योंकि हर पेज के आखिर में आयत खत्म हो गई है और हर नए पन्ने से नई आयत शुरू होती है।
जी जी बिल्कुल। बहरहाल में यह बयान कर रहा था कि जब मैंने कुरान को याद करना शुरू किया तो शुरू में मुझे एक सफा याद करने में 40 मिनट लगते थे और जब मैं छटा सातवां पारा याद करने लगा तो मैंने महसूस किया कि अब मुझे एक पेज याद करने में तकरीबन 15 मिनट लगते हैं तो मुझे शौक पैदा होने लगा। कुरान की तरफ से एक तरह की हिम्मत मिलने लगी और हौसला मिलने लगा। उसके बाद जब हिफ्ज़े कुरान करता हुआ 24 और 25 वें पारे के अरीब करीब पहुंचा तो आप यकीन नहीं करेंगे कि एक पेज याद करने में कभी मुझे 8 मिनट कभी 7 मिनट और कभी-कभी तो सिर्फ 5 मिनट लगते थे। यहां पर एक बात और बताता चलूं के शैतान बहुत चालाक है और हर वक्त बहकाने की कोशिश में रहता है। कुरान मजीद में शैतान की बात जिक्र हुई है: ( ثُمَّ لَأٓتِيَنَّهُم مِّنۢ بَيۡنِ أَيۡدِيهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ وَعَنۡ أَيۡمَٰنِهِمۡ وَعَن شَمَآئِلِهِمۡۖ وَلَا تَجِدُ أَكۡثَرَهُمۡ شَٰكِرِينَ आराफ/17)
उसके बाद सामने पीछे और दाएं बाएं से आऊंगा। और तुम अक्सरियत को शुक्रगुजार ना पाओगे।)
जब हम पांचवें या छठे पारे को याद कर रहे थे तो दिल में यह आता था यानी शैतान दिल में यह बात डालता था कि अभी तो सिर्फ मसलन 6 पारे हुए हैं और अभी 24 बाकी हैं तो बाकी कैसे याद होंगे। बाहर हाल शैतान से हमेशा होशियार रहना चाहिए और हमने इस बारे में शैतान से मुकाबला किया।
1000 के बारे में तो हम चैलेंज कर सकते हैं कि हमारे शीओ के दरमियान 1000 हाफिज मौजूद हैं 1000 से कम नहीं होंगे। खुद हमारे यूपी में कितने हाफिज ए कुरान हैं दूसरी तरफ और कितने लोग ऐसे हैं जो कुरान को हिफ़्ज़ करने में मशगूल हैं तो उनको जोड़कर तो 1000 से ज्यादा तादाद पहुंच जाएगी। मसलन किसी ने 15 पारे किए हैं किसी ने अट्ठारह किए हैं कोई 20 तक पहुंचा है। अल हमदुलिल्ला यूपी से अच्छी खासी तादाद है मुंबई महाराष्ट्र से भी अच्छी खासी तादाद है और कितने ऐसे हाफिज हैं हमारे दरमियान कि जिनको हम पहचानते नहीं हैं जो हमारे लिए गुमनाम है। और वह खुद ही अपने आप को सामने नहीं ला रहे हैं और अपने आप को नहीं दिखा रहे हैं। और रहबरे इंकलाब की उस तकरीर के बाद जिसमें आपने कहा था कि हमको इतने मिलियन कुरान के हाफिज चाहिएं तो उस तकरीर का असर इरान में भी हुआ और इरान से बाहर भी उसका बहुत बड़ा असर हुआ और काफी लोगों ने कुरान को हिफ्ज़ किया है। ईरान में रहबरे इंकलाब ने जितनी तादाद हाफिज ए कुरान के लिए मोअय्यन की थी ईरान ने उससे दुगना तादाद हाफिज ए कुरान की पेश की। और खुद हमारे क्लास ऑनलाइन चल रहे हैं और हमने बच्चों और नौजवानों को हाफिज ए कुरान बनाया है और यह बच्चे सब हिंदुस्तानी हैं अलबत्ता मुमकिन है कोई आस्ट्रेलिया में हो कोई यूरोप में हो और कोई किसी और जगह पर हो लेकिन सब हिंदुस्तानी हैं। यानी यह लोग आधे हिंदुस्तान में रह रहे हैं और आधे हिंदुस्तान से बाहर। और हमारे अलावा कितने दूसरे लोग हैं जो ऑनलाइन या ऑफलाइन क्लास ले रहे हैं
18 बच्चे और नौजवान हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं। और दिलचस्प बात यह है कि इन बच्चों की मांऐं भी कुरान को याद करने में मशगूल है और उनको भी इस काम का शौक है और बच्चों की मांऐं यह कहती हैं कि हम 1 दिन में ज्यादा नहीं कर सकते इसलिए 1 दिन में सिर्फ दो-तीन आयतें हिफ्ज़ करती हैं और ज्यादातर तजवीद पर ध्यान दिया जाता है।
मैं यहां पर एक खास बात कहता चलूं कि जो शख्स भी क़ुरान को हिफ्ज करना चाहता है वह पहले अपनी तजवीद मुकम्मल करे तजवीद के बगैर कुरान को हरगिज याद ना करें क्योंकि तजवीद के बगैर याद कर लेगा तो गलत तरीके से पढ़ा हुआ कुरान याद होगा और बाद में उसको सही करने में और सुधार करने में बहुत मुश्किल पेश आएगी। इसलिए यह जरूरी है कि पहले तजवीद पर काम करें और उसको मुकम्मल करें और उसके बाद क़ुरआन न को हिफ़्ज़ करने की कोशिश करें।
जी इसकी एक वजह तो कुदरती है और वह यह है कि हमारी कौम में जाकरी, नोहा खानी, नमाज की इमामत, कसीदा खानी यह सब हमारी क़ौम में बहुत पहले से चला आ रहा है, लेकिन कुरान को हिफ्ज़ करने की तरफ हमारी तवज्जो हम यह तो नहीं कहते कि कम थी लेकिन मुख्तलिफ हालात की वजह से हमारी कौम ज्यादातर अक़ाइद, कलाम और अहले बैट अलेही मुस्सलाम के दूसरे उलूम में लगी रही जो कि हर जमाने की जरूरत है। तो पहली वजह यही है कि इस पर काम अभी जल्दी ही शुरू हुआ है 10, 15, 20 साल पहले।
यह एक तरफ तो ओलामा और खतीबों की जिम्मेदारी है कि वह कुरान की अहमियत को काम के लिए उजागर करें और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि कुछ नादान खतीब या जाकिर और कुछ लोग बहुत गलत तरीके से यह कहते हैं कि हमारी कौम को कुरान के हिफ्ज़ करने की क्या जरूरत है।
पैग़ंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलेही वआलेही वसल्लम ने फरमाया मैं तुम्हारे दरमियान दो चीजें छोड़कर जा रहा हूं एक कुरान और दूसरे अहलेबैत तो दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए यह हम कैसे कर सकते हैं कि सिर्फ कुरान को ले लें अहले बैत को छोड़ दें या सिर्फ अहले बैत को ले लें और कुरान को छोड़ दें। दूसरी तरफ यह है कि कुरान को देखने का इतना सवाब है और उसको पढ़ने का इतना सवाब है तो यह सब हदीस और रिवायत है आप कहां लेकर जाएंगे?
और कुछ लोग कितने गलत तरीके से यह कहते हैं कि यजीद की फौज में कुरान के हाफिज थे कितनी गलत बात है कि कहते हैं कि यजीद की फौज में हाफिज ए कुरान थे लेकिन यह नहीं बताते इसके साथ के जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम हाफिज ए कुरान थे जनाब ए हबीब इब्ने मजाहिर अलैहिस सलाम हाफिज ए कुरान थे और दूसरे अस्हाबे इमाम हुसैन अलेहिम सलाम हाफिज ए कुरान थे। यजीद की फौज में हाफिज ए कुरान होने की वजह से अगर आप हाफिज ए कुरान नहीं बन्ना चाहते तो यजीद की फौज वाले खाना भी खाते थे तो क्या आप खाना खाना छोड़ देंगे?
यह बहुत अच्छी बात है बहुत जरूरी है अगर हमारे हिंदुस्तान में हर मस्जिद से पहले हर महफिल से पहले कुरान की तिलावत हो तो कितनी अच्छी बात होगी लोग कुरान की तरफ आएंगे और उससे बहुत कुछ सीखेंगे। हमारे नमाज जुम्मा के इमाम और मस्जिद को खीताब करने वाले इस बात की तरफ तवज्जो दिला सकते हैं कि हमारी कौम का जो भी प्रोग्राम हो वह कुराने पाक की तिलावत से शुरू हो और बहुत से प्रोग्राम तिलावत से शुरू होते ही हैं
आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया