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हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिज़वी:

भारत में कम से कम 1,000 शिया हाफिज़े कुरान हैं

15:24 - December 25, 2022
समाचार आईडी: 3478282
हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिज़वी और मौलाना मुहम्मद बाकिर रज़ा सईदी साहब के बीच एक महत्वपूर्ण कुरानिक बातचीत

तेहरान (IQNA): यह बातचीत मौलाना हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिजवीऔर मौलाना मुहम्मद बाकिर रज़ा सईदी के बीच हुई और इसमें दोनों ने भारत में कुरान के महत्व और कुरान को हिफ़्ज़ करने पर और इस संबंध में नए सुझावों पर विचार किया है। आशा है कि यह चर्चा आपके और पूरे देश के लोगों के लिए उपयोगी होगी। 

 

‌सबसे पहले ये बताएं कि आपका नाम ग्रामी क्या है?

हाफिज सैयद आमिर अब्बास रिजवी

 

‌आप किस क्षेत्र से संबंधित हैं?

नसीराबाद अकबरपुर जिला अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश 

 

‌कुरान में आपकी दिलचस्पी कैसे हुई? आपको किसने हिम्मत दिलाई? या आपके दिमाग में खुद ही यह आया कि आपको कुरान पर काम करना चाहिए?

 

इस संबंध में, मैं सबसे पहले अपनी मां का उल्लेख करूंगा, उन्होंने मुझे कुरान पढ़ने के लिए मेरी हिम्मत बढ़ाई। उसके बाद मुझे हौसला देने वाले दूसरे शख्स उस्ताद करीमी हैं जो कारगिल के रहने वाले हैं। उन्होंने कई वर्षों तक मुंबई के मदरसे में मेरा और अन्य छात्रों की हिम्मत आफजाई की और हौसला दिया और उन्होंने हमें कुरान और अन्य चीजों को पढ़ने में तजवीद का ख्याल रखने के बारे में बताया। फिर हमें कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुंबई में निमंत्रण मिलने लगे और इस तरह कुरान के प्रति हमारा लगाव बढ़ता गया और इसमें हमारी रुचि बढ़ती चली गई।

फिर हम ईरान आ गए और यहाँ हमने कुरान को हिफ़्ज़ करना शुरू कर दिया और अल्हम्दुलिल्लाह हमें कुरान को हिफ़्ज़ करने के आधार पर जामिया अल-मुस्तफा में भर्ती कराया गया।

 

‌आपने पूरे कुरान को कितने दिनों में याद किया?

मुझे लगभग दो साल लग गए। और मैंने जामियत अल-मुस्तफा में प्रवेश करने से पहले 25 पारे याद किए। लेकिन मुझे नहीं पता था कि जमीयत अल-मुस्तफा SA में कुरान हिफ्ज़ करने के आधार पर प्रवेश मिलता है। जब मेरे 25 पारे पूरे हो गए तो मेरे उस्ताद ने मुझे प्रवेश परीक्षा देने के लिए कहा। और मुझे दाखिला मिल गया और मैंने जामिया अल-मुस्तफा में दाखिले के बाद बचे हुए पांच पारों को पूरा किया।

 

‌ यह बताएं कि अगर किसी ने कुरान को हिफ़्ज़ कर लिया है, तो कुरान का यह कंठस्थ कहाँ काम आता है, उदाहरण के लिए, मजलिस को पढ़ने, किसी को धर्म के बारे में बताने, तहक़ीक़ करने और विभिन्न क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने जैसी जगहों पर या जिंदगी की और दूसरी मुश्किलों के हल करने के लिए?

कुरान मजीद हर मैदान में इंसान की मदद करता है उसका पुश्त पनाह बनता है सबसे बड़ी बात यह है कि उन लोगों का मुंहतोड़ जवाब है जो यह कहते हैं कि शीयों में हाफिज ए कुरान नहीं होते हैं

दूसरी जगह जहां कुरान काम आता है वह उस वक्त है जब हम अपने मुसलमान भाई से इल्मी गुफ्तगू करते हैं और ज्ञान की बहस चलती है तो कोई भी कुरान की आयत का इनकार नहीं कर सकता और कुरान की दलील कोई भी रद्द नहीं कर सकता है। तो दूसरे मजहब से बातचीत करने में दलील के तौर पर कुरान का हिफ्ज करना मदद देता है। उसके बाद जब आप तकरीर करते हैं मजलिस पढ़ते हैं तो सुनने वाले यह देखते हैं कि तकरीर करने वाला मजलिस पढ़ने वाला कुरान से कितना फायदा उठा रहा है और उससे कितना इस्तिफादा कर रहा है। इस तरह अपनी मजलिस में जितना भी ज्यादा कुरान से इस्तफादा होगा पब्लिक में उतनी ज्यादा मकबूलयत मिलेगी। फिर अगर आप सफर में है घर से दूर हैं और पढ़ने लिखने वाली चीजों से दूर हैं और आपको कोई नोट लिखना है तो बड़ी आसानी से अपने कुरान के हिफ्ज़ पर ऐतबार करते हुए आप अपना नोट्स बना सकते हैं अपनी बातें लिख सकते हैं जो कुरान से ली गई हों। कोई अगर कुरान की आयत कहकर कुछ पढ़ रहा है आप अगर हाफिज ए कुरान हैं तो अंदाजा लगा सकते हैं कि वह आयत सही पढ़ रहा है या पब्लिक को बेवकूफ बना रहा है। कुरान मजीद को हिफ़्ज़ करने के दुनियावी फायदे भी बेशुमार हैं और मानवी और रूहानी फायदे भी बेशुमार हैं।

 

‌ यह बात सही है कि जब किसी को कुरान याद होता है तो खुद आयतें जो उसके सीने में और उसके जहन में होती है तो बहुत से काम खुद-ब-खुद हल हो जाते हैं मैंने खुद कुरान का एक हिस्सा हिफ्ज़ किया है और बहुत पहले जामिया अल मुस्तफा के कुरानी मुकाबले में शिरकत भी की है तो उसके बाद बड़ा फायदा हुआ जो कुरान मजीद की आयतें जहन में आती है और आदमी की सोच में रहती हैं तो उसके मायने पर ग़ौर करने का मौका मिलता है। किसी भी जगह अगर आप अकेले बैठे हैं कि जहां आप कुरान की तिलावत नहीं कर सकते हैं लेकिन उसके बावजूद आप कुरान की आयतों पर ग़ौर कर सकते हैं अगर आप हाफिज हैं। बहरहाल आपसे मेरा सवाल यह है के आप के दोस्तों के चजमगठे में या जिन लोगों को आप पहचानते हैं जानते हैं उन लोगों में कितने लोग कुरान के हाफिज हैं?

कई लोग हैं। एक बनारस से हैं हसन रजा भाई, वह शायर भी हैं उन्होंने बाकायदा हमारे साथ कुरान को हिफ़्ज़ किया था और मुज्तबा रिजवी साहब हैं जिनको ईरान की नेशनलटी भी मिली हुई है और वह मेरे उस्ताद हैं। इसके अलावा फैजुल हसन साहब हैं वह भी कुरान के हाफिज है और दिलावर साहब हैं जिन्होंने हिंदुस्तान में दारुल कुरान भी खोल रखा है। यह सब मुकम्मल कुरान के हाफ़िज़ हैं जिनको हम बहुत करीब से जानते हैं।

 

‌अच्छा यह वह लोग हैं जो आपकी जान पहचान के हैं जिनको आप नजदीक से जानते हैं अब उन लोगों को बताइए जिनको हो सकता है आप नजदीक से ना जानते हों लेकिन वह कुरान के हाफिज है और हिंदुस्तानी है अब चाहे वह हिंदुस्तान के अंदर रह रहे हो या हिंदुस्तान के बाहर रह रहे हों। तो एक जुमले में मेरा सवाल यह है कि हिंदुस्तान में कुरान के शिया हाफिज की तादाद कितनी है?

लखनऊ में अल-हिरा नाम का बाकायदा शीओं का एक मदरसा है जो कुरान को हिफ़्ज़ कराता है अभी यहां क़ुम मुकद्दसा में नए तुल्लाब आए हैं जो हाफिज ए कुरान हैं उनकी तादाद अच्छी खासी है और मैं बहुत ज्यादा करीब से उनको नहीं जानता हूं। इसके अलावा हिंदुस्तान के अंदर अच्छी खासी तादाद है जो कुरान के हिफ्ज करने के लिए तालीम हासिल कर रहे हैं। किसी ने 10 कर लिए हैं किसी ने 15 मुकम्मल कर लिए हैं किसी ने 20 पूरे कर लिए हैं और किसी ने 25 खत्म कर लिए तो अगर हिंदुस्तान के शीअओं में कुरान के हाफिजों की तादाद देखी जाए तो कम से कम 1000 से ज्यादा की तादाद होगी

 

‌अच्छा एक हजार से ज्यादा! अल्हम्दुलिल्लाह। 

1000 से ज्यादा हमारे शीऔं के अंदर कुरान के हाफिज मौजूद है।

 

‌ वाह यह तो बड़े फख्र की बात है।

जी अल्लाह का शुक्र है। मुझे यहां पर एक बात और याद आई। शुरू में आप ने सवाल किया था कि कुरान का हिफ्ज करना कहां-कहां काम आता है तो यह मुझे याद आया कि जब मैंने हिफ्ज़ करना शुरू किया था। यहां पर मैं यह भी बता दूं कि मैंने उस्मान ताहा के रस्मुल खत वाले कुरान से हिफ्ज़ किया और मैं दूसरों को भी यह मशवरा देता हूं कि वह उस्मान ताहा वाले कुरान से ही हिफ्ज़ करें उस्मान ताहा वाले कुरान में यह आसानी है कि बार-बार वरक़ पलट कर नहीं देखना पड़ता क्योंकि हर पेज के आखिर में आयत खत्म हो गई है और हर नए पन्ने से नई आयत शुरू होती है।

 

‌हां उस्मान ताहा के रस्मुल खत की यह खासियत है। अलबत्ता उस्मान ताहा की लिखाई में कुछ खामियां भी हैं जिनको मद्देनजर रखना चाहिए। उसके अलावा उड़ान कुरान की एक और छपाई मज्मए जहानी अहले बैत की तरफ से हुई है अभी पिछले हफ्ते एक प्रोग्राम में इसका एक नुस्खा मुझे दिया गया था तो उस पर मैंने देखा और ग़ौर किया के उसमें भी उस्मान ताहा वाली लिखाई की खुसूसियत मौजूद है हर पेज के आखिर में आयत खत्म होती है और हर पेज के शुरू में नई आयत शुरू होती है। इसकी लिखाई के बारे में बताया गया है कि यह तबरेज़ी लिखाई को कंपोज किया गया है और मेरा अंदाजा है के जो खामियां उस्मान ताहा वाली लिखाई में हैं वह इस लिखाई में नहीं होंगी। क्योंकि आयतुल्लाह मकारिम शीराजी साहब ने बयान किया था कि उस्मान ताहा वाली लिखाई में कुछ खामियां पाई जाती हैं 

जी जी बिल्कुल। बहरहाल में यह बयान कर रहा था कि जब मैंने कुरान को याद करना शुरू किया तो शुरू में मुझे एक सफा याद करने में 40 मिनट लगते थे और जब मैं छटा सातवां पारा याद करने लगा तो मैंने महसूस किया कि अब मुझे एक पेज याद करने में तकरीबन 15 मिनट लगते हैं तो मुझे शौक पैदा होने लगा। कुरान की तरफ से एक तरह की हिम्मत मिलने लगी और हौसला मिलने लगा। उसके बाद जब हिफ्ज़े कुरान करता हुआ 24 और 25 वें पारे के अरीब करीब पहुंचा तो आप यकीन नहीं करेंगे कि एक पेज याद करने में कभी मुझे 8 मिनट कभी 7 मिनट और कभी-कभी तो सिर्फ 5 मिनट लगते थे। यहां पर एक बात और बताता चलूं के शैतान बहुत चालाक है और हर वक्त बहकाने की कोशिश में रहता है। कुरान मजीद में शैतान की बात जिक्र हुई है: ( ثُمَّ لَأٓتِيَنَّهُم مِّنۢ بَيۡنِ أَيۡدِيهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ وَعَنۡ أَيۡمَٰنِهِمۡ وَعَن شَمَآئِلِهِمۡۖ وَلَا تَجِدُ أَكۡثَرَهُمۡ شَٰكِرِينَ आराफ/17)

 उसके बाद सामने पीछे और दाएं बाएं से आऊंगा। और तुम अक्सरियत को शुक्रगुजार ना पाओगे।)

जब हम पांचवें या छठे पारे को याद कर रहे थे तो दिल में यह आता था यानी शैतान दिल में यह बात डालता था कि अभी तो सिर्फ मसलन 6 पारे हुए हैं और अभी 24 बाकी हैं तो बाकी कैसे याद होंगे। बाहर हाल शैतान से हमेशा होशियार रहना चाहिए और हमने इस बारे में शैतान से मुकाबला किया।

 

‌आपने कहा कि हिंदुस्तान में एक हजार से ज्यादा शीया कुरान के हाफिज हैं ये आप किस बुनियाद पर कह रहे हैं? मुमकिन है कोई यह सोचे कि यह तादाद तो बहुत ज्यादा बता रहे हैं। आप किस तरह से तादाद बता रहे हैं?

1000 के बारे में तो हम चैलेंज कर सकते हैं कि हमारे शीओ के दरमियान 1000 हाफिज मौजूद हैं 1000 से कम नहीं होंगे। खुद हमारे यूपी में कितने हाफिज ए कुरान हैं दूसरी तरफ और कितने लोग ऐसे हैं जो कुरान को हिफ़्ज़ करने में मशगूल हैं तो उनको जोड़कर तो 1000 से ज्यादा तादाद पहुंच जाएगी। मसलन किसी ने 15 पारे किए हैं किसी ने अट्ठारह किए हैं कोई 20 तक पहुंचा है। अल हमदुलिल्ला यूपी से अच्छी खासी तादाद है मुंबई महाराष्ट्र से भी अच्छी खासी तादाद है और कितने ऐसे हाफिज हैं हमारे दरमियान कि जिनको हम पहचानते नहीं हैं जो हमारे लिए गुमनाम है। और वह खुद ही अपने आप को सामने नहीं ला रहे हैं और अपने आप को नहीं दिखा रहे हैं। और रहबरे इंकलाब की उस तकरीर के बाद जिसमें आपने कहा था कि हमको इतने मिलियन कुरान के हाफिज चाहिएं तो उस तकरीर का असर इरान में भी हुआ और इरान से बाहर भी उसका बहुत बड़ा असर हुआ और काफी लोगों ने कुरान को हिफ्ज़ किया है। ईरान में रहबरे इंकलाब ने जितनी तादाद हाफिज ए कुरान के लिए मोअय्यन की थी ईरान ने उससे दुगना तादाद हाफिज ए कुरान की पेश की। और खुद हमारे क्लास ऑनलाइन चल रहे हैं और हमने बच्चों और नौजवानों को हाफिज ए कुरान बनाया है और यह बच्चे सब हिंदुस्तानी हैं अलबत्ता मुमकिन है कोई आस्ट्रेलिया में हो कोई यूरोप में हो और कोई किसी और जगह पर हो लेकिन सब हिंदुस्तानी हैं। यानी यह लोग आधे हिंदुस्तान में रह रहे हैं और आधे हिंदुस्तान से बाहर। और हमारे अलावा कितने दूसरे लोग हैं जो ऑनलाइन या ऑफलाइन क्लास ले रहे हैं

 

‌आपसे जो लोग जुड़े हुए हैं उनकी तादाद कितनी है?

18 बच्चे और नौजवान हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं। और दिलचस्प बात यह है कि इन बच्चों की मांऐं भी कुरान को याद करने में मशगूल है और उनको भी इस काम का शौक है और बच्चों की मांऐं यह कहती हैं कि हम 1 दिन में ज्यादा नहीं कर सकते इसलिए 1 दिन में सिर्फ दो-तीन आयतें हिफ्ज़ करती हैं और ज्यादातर तजवीद पर ध्यान दिया जाता है।

मैं यहां पर एक खास बात कहता चलूं कि जो शख्स भी क़ुरान को हिफ्ज करना चाहता है वह पहले अपनी तजवीद मुकम्मल करे तजवीद के बगैर कुरान को हरगिज याद ना करें क्योंकि तजवीद के बगैर याद कर लेगा तो गलत तरीके से पढ़ा हुआ कुरान याद होगा और बाद में उसको सही करने में और सुधार करने में बहुत मुश्किल पेश आएगी। इसलिए यह जरूरी है कि पहले तजवीद पर काम करें और उसको मुकम्मल करें और उसके बाद क़ुरआन न को हिफ़्ज़ करने की कोशिश करें।

 

‌आपने कहा कि हिंदुस्तान में तकरीबन एक हजार से ज्यादा शिया हाफिज ए कुरान मौजूद है तो मेरा सवाल यह है कि यह एक हजार से ज्यादा जो हाफिज ए कुरान है यह फ्रंट पर क्यों नहीं आ रहे हैं सामने क्यों नहीं आ रहे हैं जो लोग ख़िताबत करते हैं वह फ्रंट पर मौजूद हैं जो नमाज की इमामत करते हैं वह भी आवाम के सामने हैं जो नोहा पढ़ते हैं वह भी कौम के सामने हैं जो शायरी करते हैं उनको भी लोग पहचानते हैं जो कसीदा पढ़ते हैं महफिल में वह लोग भी पब्लिक के सामने हैं। लेकिन हमारे जो हाफिज ए कुरान हैं और कारीए कुरान हैं उनको हमारी कौम नहीं पहचानती है यह किसकी कमी है और हमारी कौम में यह कमजोरी किस जगह पर है जिसकी वजह से इतनी बड़ी फज़ीलत वाले शख्स को हम सामने नहीं ला पा रहे हैं यह गैप कहां पर है और यह कमजोर पॉइंट किस जगह पर है? आप इस पर रोशनी डालिए ताकि इस कमजोरी वाले पहलू को मजबूत कर सके और इस कमी को इस खामी को दूर किया जा सके।

जी इसकी एक वजह तो कुदरती है और वह यह है कि हमारी कौम में जाकरी, नोहा खानी, नमाज की इमामत, कसीदा खानी यह सब हमारी क़ौम में बहुत पहले से चला आ रहा है, लेकिन कुरान को हिफ्ज़ करने की तरफ हमारी तवज्जो हम यह तो नहीं कहते कि कम थी लेकिन मुख्तलिफ हालात की वजह से हमारी कौम ज्यादातर अक़ाइद, कलाम और अहले बैट अलेही मुस्सलाम के दूसरे उलूम में लगी रही जो कि हर जमाने की जरूरत है। तो पहली वजह यही है कि इस पर काम अभी जल्दी ही शुरू हुआ है 10, 15, 20 साल पहले।

 

‌मेरे सवाल का मकसद यह है कि आखिर क्या किया जाए कि जो कुरान के क़ारी है जो कुरान के हाफिज है हम उनको आवाम के सामने और अपनी कौम के सामने लेकर आएं उनको लोग पहचाने वह हमारी कौम के लिए आइडियल बनें। कुरान की और हिफ़्ज़े कुरान की अहमियत पैदा हो जो एक जमाने में शीओ के दरमियान उड़ान के हिल्स करने की अहमियत थी। तो सवाल यह है कि हम क्या करें कि हमारे दरमियान कुरान के हिफ्ज़ कि जो अहमियत थी और बाद में कुछ अर्से के लिए मुख्तलिफ हालात और मजबूरियां और जो हमारी कौम के ऊपर परेशानियां आईं उसकी वजह से यह कुछ अर्से के लिए किनारे हो गया और दूसरी चीजें अहम हो गईं और वह अहम भी थी वक्त की जरूरत थी। यह सब अपनी जगह पर लेकिन अब जबकि हम चाहते हैं कि अपनी कौम को दोबारा तामीर करें और मुकम्मल तौर पर उसी तरह से अपनी कौम को सजाएं सवारें जैसे हमारे अहलेबैत अलैहिम सलाम और हमारे उलामा चाहते थे तो इसके लिए हमको क्या करना चाहिए?

यह एक तरफ तो ओलामा और खतीबों की जिम्मेदारी है कि वह कुरान की अहमियत को काम के लिए उजागर करें और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि कुछ नादान खतीब या जाकिर और कुछ लोग बहुत गलत तरीके से यह कहते हैं कि हमारी कौम को कुरान के हिफ्ज़ करने की क्या जरूरत है।

 

‌यह तो गलत है। क्योंकि शहीदे सानी ने अपनी किताब मुन्यतुल मुरीद में लिखा है कि हमारे उलमा और फ़ुक़हा ऐसे थे कि जो शख्स भी हाफिज ए कुरान ना हो उसको हदीस और फिक़्ह नहीं सिखाते थे उसको हदीस और फ़ीक़ह की तालीम नहीं देते थे अपनी शागिर्दी में कुबूल नहीं करते थे जब तक कि वह पहले ही कुरान हिफ्ज़ न कर लें।(كان السلف لا يعلمون الحديث و الفقه إلا لمن حفظ القرآن. (मुनयतुल मुरीद- प. 263)۔ 

पैग़ंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलेही वआलेही वसल्लम ने फरमाया मैं तुम्हारे दरमियान दो चीजें छोड़कर जा रहा हूं एक कुरान और दूसरे अहलेबैत तो दोनों को साथ लेकर चलना चाहिए यह हम कैसे कर सकते हैं कि सिर्फ कुरान को ले लें अहले बैत को छोड़ दें या सिर्फ अहले बैत को ले लें और कुरान को छोड़ दें। दूसरी तरफ यह है कि कुरान को देखने का इतना सवाब है और उसको पढ़ने का इतना सवाब है तो यह सब हदीस और रिवायत है आप कहां लेकर जाएंगे?

और कुछ लोग कितने गलत तरीके से यह कहते हैं कि यजीद की फौज में कुरान के हाफिज थे कितनी गलत बात है कि कहते हैं कि यजीद की फौज में हाफिज ए कुरान थे लेकिन यह नहीं बताते इसके साथ के जनाबे अब्बास अलैहिस्सलाम हाफिज ए कुरान थे जनाब ए हबीब इब्ने मजाहिर अलैहिस सलाम हाफिज ए कुरान थे और दूसरे अस्हाबे इमाम हुसैन अलेहिम सलाम हाफिज ए कुरान थे। यजीद की फौज में हाफिज ए कुरान होने की वजह से अगर आप हाफिज ए कुरान नहीं बन्ना चाहते तो यजीद की फौज वाले खाना भी खाते थे तो क्या आप खाना खाना छोड़ देंगे?

 

‌जी आप सही कह रहे हैं। मेरे इस सवाल का असली मकसद यह था कि आप कुछ तजवीज दें। चलिए मैं ही मिसाल देकर आपको बताता हूं मसलन क्या यह हम कर सकते हैं कि जब हमारा बच्चा मदरसे में जाए तो हम यह लाजमी करें कि पहले वह कम से कम 2 पारे हिफ्ज़ करे या पांच पारे हिफ्ज़ करे या कोई और तादाद हिफ़्ज़ करे? या आप यह कह सकते हैं के मसलन जो मजलिस होती है जो मजलिस करने वाले हैं उनसे कहें कि वह अपनी मजलिस को कुरान की तिलावत से शुरू करें अलबत्ता बहुत सी मजलिस अब भी तिलावत से शुरू होती हैं। या आप जुमे के इमामो से कह सकते हैं कि वह जुम्मे में इसके लिए क्या करें अपने ख़ुतबों में क्या बयान करें क्योंकि बहुत से लोग नमाज ए जुमा से जुड़े रहते हैं

यह बहुत अच्छी बात है बहुत जरूरी है अगर हमारे हिंदुस्तान में हर मस्जिद से पहले हर महफिल से पहले कुरान की तिलावत हो तो कितनी अच्छी बात होगी लोग कुरान की तरफ आएंगे और उससे बहुत कुछ सीखेंगे। हमारे नमाज जुम्मा के इमाम और मस्जिद को खीताब करने वाले इस बात की तरफ तवज्जो दिला सकते हैं कि हमारी कौम का जो भी प्रोग्राम हो वह कुराने पाक की तिलावत से शुरू हो और बहुत से प्रोग्राम तिलावत से शुरू होते ही हैं

 

‌आपने काफी बातें बयान कीं और हमारे लिए नई थीं और इंशाल्लाह आपकी यह गुफ्तगू कौम के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित होगी आपको काफी जहमत दी। बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करते हैं आपका। आपने वक्त दिया और इंशाल्लाह खुदा हमको तोफीक दे कि हम और आप कुरान और अहले बैत अलैहिम अस्सलाम की साथ-साथ पैरवी कर सकें 

आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया

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